भारत  के विकास यात्रा की  एक नई कहानी (स्वतंत्रता दिवस के 77वीं वर्षगांठ पर विशेष)

बीते  77 वर्षों के सफर पर गौर करें तो भारत की यह विकास यात्रा समस्त देशवासियों की मेहनत, त्याग और समर्पण की एक नई कहानी गढ़ती नजर आती है। 

भारत  के विकास यात्रा की  एक नई कहानी (स्वतंत्रता दिवस के 77वीं वर्षगांठ पर विशेष)

हम सब देश की आजादी के 77वें  वर्ष में  पंहुच गए हैं। पूरब से पश्चिम और  उत्तर से दक्षिण तक हमारा प्यारा तिरंगा बड़े ही गर्व के साथ लहरा रहा है। इस अवसर पर हम सब देशवासी यह गर्व से कह सकते हैं कि भारत की विकास यात्रा एक नई कहानी गढ़ती नजर आ रही है। ब्रिटिश हुकूमत की कूटनीति के कारण 15 अगस्त 1947 को देश को खंडित आजादी मिली थी। देश की आजादी के साथ ही भारत दो टुकड़ों में बंटा था ।  तब देश 565 रियासतों में  बिखरा हुआ था। अंग्रेजी हुकूमत जाते-जाते देश के  समक्ष कई चुनौतियां  छोड़ गए थे ‌। 16 वीं सदी तक भारत एक सोने की चिड़िया के रूप में विश्व भर में जाना जाता था। भारत एक कृषि प्रधान देश होने के साथ ही विश्व की अर्थव्यवस्था में इसका  योगदान सबसे उपर था।  भारत निर्यात के मामले में पूरी दुनिया में अग्रणी था। तब ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था भारत की अर्थव्यवस्था के सामने बहुत कम थी।
   आजादी मिलने के साथ ही देशवासियों ने अंग्रेजों द्वारा छोड़ी गई इस चुनौती को सहर्ष स्वीकार किया और भारत की विकास यात्रा की एक नई कहानी गढ़नी  शुरू कर दी । देश के प्रथम गृह मंत्री लौहपुरुष वल्लभभाई पटेल ने 565  रियासतों को एक  भारत संघ में शामिल कर अंग्रेजों को करारा जवाब दिया था। उनके इस अवदान को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता।अंग्रेज जब भारत छोड़कर  गए  थे, तब भारत का विश्व की अर्थव्यवस्था में मात्र दो प्रतिशत योगदान था, लेकिन आज भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन चुका है। चंद्रयान 2 और आदित्य एल वन  की सफलता ने विज्ञान के क्षेत्र में भारत का नाम सबसे ऊपर कर दिया है।
 एक ओर भारत की जनता विकास यात्रा की नहीं कहानी गढ़ रहे होते हैं, वहीं दूसरी ओर हर दिन देश की एकता और अखंडता को बाधित करने के लिए विश्वव्यापी साजिशें  भी रची जा रही हैं।  इसके बावजूद हिंदुस्तान बिखरा नहीं रहा है बल्कि देशवासी एक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के नीचे  सभी वंदन रत हैं।  भारत की विविध संस्कृति, भाषा, रीति रिवाज और रहन सहन एक साथ प्रगति के पथ पर अग्रसर है। यह विविधता हम सबों को एक सूत्र में बांध रखा है । बीते  77 वर्षों के सफर पर गौर करें तो भारत की यह विकास यात्रा समस्त देशवासियों की मेहनत, त्याग और समर्पण की एक नई कहानी गढ़ती नजर आती है। 
  आज भारत विश्व क्षितिज पर एक नई पहचान बनाने में सफल हुआ है। आज भारत को एक मजबूत और  शांतिप्रिय देश के रूप में जाना जा रहा है। कोरोना जैसी विश्वव्यापी महामारी को देशवासियों ने मिलजुल कर परास्त किया । भारत के वैज्ञानिकों ने कोरोना का अचूक वैक्सीन आविष्कार कर  एक मिशाल काम किया। भारत ने पूरी दुनिया को कोरोना जैसी महामारी से मुकाबला करने का पाठ भी पढ़ाया था। इस कालखंड में भारत ने विश्व के कई देशों को राहत सामग्री के साथ दवाइयां भी पहुंचाई थी।
 आज देशवासियों को यह जानना चाहिए कि ब्रिटिश हुकूमत ने गुलाम भारत की एक ऐसी तस्वीर विश्व पटल पर रखी थी, जिससे भारत के गौरवशाली इतिहास पर ही  प्रश्न चिन्ह लग गया था।  फलस्वरुप भारत को एक  अज्ञानियों, ग़रीबों और सपेरों के देश के रूप में जाना जाने लगा था। समय के साथ आए बदलाव और देशवासियों के बीच स्वराज्य की कामना  और भारत की आजादी ने ब्रिटिश हुकूमत के झूठे छल तंत्र को तोड़कर ही रख दिया है।  आज की बदली परिस्थिति  में विश्व भर के देशों की निगाहें भारत पर टिकी हुई हैं। रूस - यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के समापन के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक शांति दूत बनकर यूक्रेन की यात्रा पर जा रहा है।  भारत विज्ञान, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, शिक्षा, सैनिक क्षमता आदि विभिन्न क्षेत्रों में एक नई ऊंचाई को छूता चला जा रहा 
है। 
   ब्रिटिश हुकूमत, भारत में दो सौं वर्षों के लंबे शासन में जितना लूट सकती थी, भारत को लूटी थी । ब्रिटिश हुकूमत यहां की बेशकीमती संपतिया ब्रिटेन ले गई थी। सिर्फ एक खाली खजाने के साथ सत्ता सौंपी गई थी।  तब आजाद भारत एक  ऐसे मुकाम पर खड़ा था, जहां गुलामी के दंश के अलावा कुछ भी न था । आजादी के तुरंत बाद पाकिस्तान से युद्ध झेलना पड़ा था। भारत के लिए यह बहुत ही कठिनाइयों का दौर रहा था।  अंग्रेज भारत से जाकर भी उनकी कुटनीतिक चालें  कभी बंद नहीं हुई थी। अंग्रेज, भारत को कई टुकड़ों में बटा देखना चाहते थे । इस विषम परिस्थिति को अनुकूल बनाने में हमारे राजनेताओं ने बेमिसाल धैर्य और साहस का परिचय दिया था। उनके इस दूरदर्शी कदम की जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है । उनके कुशल नेतृत्व के चलते ही भारत इस मुकाम तक पहुंच पाया है।
   अंग्रेजी हुकूमत की कूटनीति और हमारे प्रथम हुक्मरान जवाहरलाल नेहरू से  कुछ राजनीतिक भूलें भी हुई थी।   फलस्वरूप जम्मू कश्मीर जैसे एक प्रांत में दो विधान की परंपरा कायम रह गई थी। इस परंपरा को  पांच वर्ष पूर्व दुरुस्त किया गया । धारा 370 और 35 a जैसे कानून को सदा सदा के लिए समाप्त कर भारतीय संसद ने एक नया इतिहास रच दिया । आज जम्मू कश्मीर देश की मुख्य धारा से जुड़ चुका है। जम्मू कश्मीर दिन-ब-दिन तरक्की की ऊंचाइयों को छूता चला जा रहा है।  एक समय भारत  इसी जम्मू कश्मीर के मुद्दे को लेकर न्याय पाने के लिए  संयुक्त राष्ट्र संघ गया था। 77 वर्षों बाद आज उसी संयुक्त राष्ट्र संघ की अध्यक्षता देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते नजर आ रहे हैं। 
 देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत देश के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा  की थी । उन्होंने  देश में कई नई परियोजनाओं का शिलान्यास किया था। ‌फलस्वरूप भारत की पहचान एक मजबूत राष्ट्र के रूप में हो पाई। इसी दौरान पड़ोसी देश चीन ने हिंदी चीनी भाई भाई कह कर भारत पर आक्रमण कर दिया था। हमारी तैयारी उस स्तर की ना होने के कारण भारत को पराजय का भी मुंह देखना पड़ा था।  हमारी हजारों मिल जमीने चीन के कब्जे में चली गई। इस पराजय से सबक लेकर देश में विज्ञान, तकनीकी और औद्योगिक  क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए देश में कई  उधोगों की शुरुआत की गई थी।  संपूर्ण देश में उद्योगों का जाल  बिछा दिया था। देश में विद्यमान खनिज संपदा आधारित बड़े बड़े उद्योगों का देश की ही भूमि शुरुआत की गई थी। देश में बड़े-बड़े बांध बनाए गए। संपूर्ण देश में सिंचाई की बेहतर व्यवस्था की जा रही है। दुर्गम से दुर्गम स्थानों तक जाने के लिए बड़े बड़े पुलों का निर्माण किया जा रहा है। भारत अपने गौरव को प्राप्त करने के लिए खून पसीना एक कर दिया था।
   देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने  देश को खाद्यान्न और रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर व मजबूती प्रदान करने के लिए 'जय जवान, जय किसान' का नारा दिया था । उन्होंने दोनों क्षेत्रों में बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किया। फलस्वरूप देश में हरित क्रांति आई और भारत अनाज के मामले में आत्मनिर्भर बन पाया । रक्षा क्षेत्र में भी कई नई परियोजनाओं का शुभारंभ किया गया था। भारत को अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर एक नहीं पहचान बनाने के लिए देश की युवा शक्ति ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।  फलस्वरूप आज भारत हर क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ता जा रहा।  पहले खेल के क्षेत्र में भारत  बमुश्किल  एक दो अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण पदक प्राप्त कर पाता था, लेकिन आज परिस्थितियां बिल्कुल पलट गई है । अब अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धाओं में भारत एक नई पहचान बनाने में सफल हुआ है। इसरो के शोध ने अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान के क्षेत्र में एक नई पहचान बनाई है। आज भारतीय मूल के लोग विश्व के किसी भी देश में रह रहे हैं। वे, भारत का नाम अपनी मेहनत से रोशन कर रहे हैं।  एक समय था, जब अंग्रेज भारत पर राज करते थे,  वही  एक भारतीय मूल का एक व्यक्ति  इंग्लैंड के प्रधानमंत्री तक  बना। कल और आज के भारत की विकास यात्रा में आमूल चूल परिवर्तन नजर आ रहा है।  स्वामी विवेकानंद ने शिकागो की धर्म सभा में जो शंखनाद किया था,आज वह जमीन पर उतरता नजर आ रहा है। आज  भारत एक नए युग में प्रवेश कर चुका है। समस्त देशवासियों को एक सुदृढ़, मजबूत  और नए भारत निर्माण का संकल्प लेने की जरूरत है ।