'पद्मश्री' महावीर नायक ने झारखंड को गौरवान्वित किया 

यह सम्मान नागपुरी भाषा साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने और उत्कृष्ट गीतों की रचना और बिखरे पड़े लगभग पांच हजार गीतों के संकलन  करने वाले महावीर नायक की एकनिष्ठ सघन यात्रा का प्रतिफल है।

'पद्मश्री' महावीर नायक ने झारखंड को गौरवान्वित किया 

झारखंड की क्षेत्रीय भाषा नागपुरी के जाने-माने गायक - गीतकार महावीर नायक को 27 मई को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने 'पद्मश्री' प्रदान कर सम्मानित किया। यह सम्मान नागपुरी भाषा साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने और उत्कृष्ट गीतों की रचना और बिखरे पड़े लगभग पांच हजार गीतों के संकलन  करने वाले महावीर नायक की एकनिष्ठ सघन यात्रा का प्रतिफल है।  झारखंड के किसी एक नागपुरी भाषा के गीतकार -  गायक को देश का  सर्वोच्च  नागरिक सम्मान राष्ट्रीय स्तर पर मिलता है, तो निश्चित तौर पर झारखंड का मान बढ़ता है।  हम सबों को यह जानना चाहिए कि कला साहित्य, शिक्षा, सार्वजनिक मामलों, चिकित्सा, सामाजिक कार्य, विज्ञान, खेल और उद्योग जैसे विविध क्षेत्रों में असाधारण योगदान देने वाले देश भर के विभिन्न क्षेत्रों के 71 व्यक्तियों को उक्त कार्यक्रम में पद्म  पुरस्कार प्रदान कर  सम्मानित किया गया।‌ आयोजित  इस कार्यक्रम में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह,विदेश मंत्री एस.जयशंकर और अन्य गणमान्य लोगों  की उपस्थिति में झारखंड के महावीर नायक को 'पद्मश्री' सम्मान से सम्मानित किया जाना निश्चित तौर पर बेहद हर्ष और गौरव की बात है।
 यह मेरा परम सौभाग्य है कि नागपुरी भाषा साहित्य के मुर्धन्य विद्वान स्वर्गीय बी.पी. केसरी के साथ कई बार महावीर नायक से बातचीत करने का अवसर प्राप्त हुआ। बी.पी. केसरी द्वारा पिठोरिया में स्थापित 'नागपुरी भाषा संस्थान' के  छोटे से सभागार में निजी तौर पर नागपुरी के गीत भी महावीर नायक से सुनने का अवसर प्राप्त हुआ।  सार्वजनिक स्थलों पर आयोजित कार्यक्रमों में सीधा महावीर नायक को सुना। महावीर नायक की गायिकी का कोई जवाब नहीं है। वे पूरे मन से गीत लिखते हैं।  और पूरे मन से गीत गाते भी हैं । उनके गीत सीधे मन मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं। नागपुरी भाषा साहित्य पर उनकी जबरदस्त पकड़ है। आम नागपुरी भाषा की बोलचाल  के शब्दों को इस तरह अपने गीत में पिरो देते हैं कि गीत खुद ब खुद मधुर संगीत में बदल जाते। उनके गीत खुले छंदों में भी होते हैं। और बंधें छंदों में भी होते हैं। जिसे कोई भी बहुत ही आसानी से गा सकता है । आज यही कारण है कि उनके गीत इतने लोकप्रिय हो चुके हैं।
  वे जितने महान गीतकार और एक सफल गायक है, उतने ही सहज,सरल प्रकृति के मृदुभाषी व्यक्ति हैं। नागपुरी भाषा साहित्य उनके दिल में बसता है। अब तक का उनका संपूर्ण जीवन नागपुरी भाषा साहित्य के प्रचार और प्रसार को समर्पित रहा है । उन्होंने नागपुरी भाषा साहित्य को विभिन्न मंचों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने का काम किया है । झारखंड की माटी की भाषा नागपुरी को आगे बढ़ाने के कोई भी अवसर को छोड़ते नहीं है। उनका  बाल काल से ही नागपुरी भाषा साहित्य के प्रति  गहरा लगाव रहा है, जो अनवरत चलता चला जा रहा है। 82 वर्ष की उम्र हो जाने के बावजूद उनकी सक्रियता में कोई कमी नहीं आई है बल्कि एक युवा की तरह स्टेज शो में सम्मिलित होते रह रहें हैं। यहां यह लिखना जरूरी हो जाता है कि स्वर्गीय बी.पी. केसरी ने महावीर नायक के इस विशिष्ट प्रतिभा को पहचान बहुत ही पहले पहचान लिया था। प्रारंभिक दिनों में स्वर्गीय बी.पी. केसरी नागपुरी भाषा साहित्य के होने वाले कार्यक्रमों में महावीर नायक को विशेष रूप से आमंत्रित कर उनके रचित गीतों का गायन करवाते थे।
  महावीर नायक को पद्मश्री सम्मान दिए जाने के बाद उन्होंने कहा कि 'यह सम्मान अपने दिवंगत पिता - दादा और क्षेत्रीय नागपुरी भाषा के तमाम कलाकारों को समर्पित करता हूं।  यह मुझसे ज्यादा यहां की मधुर संस्कृति का सम्मान है।' उक्त दो छोटे से वाक्यों में नायक जी ने एक बड़ी बात कहने की कोशिश की है कि उनके पिता और दादा दोनों नागपुरी के एक गायक रहे थें। उन्हें अपने दादा और पिता से ही नागपुरी गीत गाने की प्रेरणा मिली थी । उन्होंने यह पुरस्कार अपने दादा-दादी को समर्पित कर यह बताने की कोशिश की है कि हम सबों को अपने पुरखों को कदापि नहीं भूलना चाहिए । आज हम सब जो कुछ भी हैं, उसमें उनके पुरखों का बड़ा योगदान है । इसलिए अपने पूर्वजों को हमेशा याद करना चाहिए।  साथ ही उन्होंने यह भी बताने की कोशिश की है कि झारखंड की  संस्कृति बहुत ही मधुर है। झारखंड  की संस्कृति की  मधुरता को समझने की जरूरत है। इसे अपनाने की जरूरत है।  यहां की संस्कृति मीठा पन से  कोई भी प्रभावित हो सकता है।  झारखंड की रीति - रिवाज,रहन - सहन, भाषा साहित्य के मीठा पन को महसूस किया जा सकता है।‌ झारखंड के जंगलों से बहने वाली हवा के संगीत को महसूस करने की जरूरत है । जब हवाएं  बड़े-बड़े वृक्षों और छोटे-छोटे पौधों  को स्पर्श करते हुए जब  आगे बढ़ती हैं, जो खुद व खुद एक संगीत बन जाती है। उसी संगीत को महावीर नायक ने अपने गीतों में दर्ज किया है। उनके गीतों में झारखंड की संस्कृति, रीति - रिवाज, रहन-सहन और भाषा की आवाज साफ तौर पर सुनाई देती है। इसलिए झारखंड के झाड़ और जंगलों को बचाने की जरूरत है। 
  महावीर नायक का जन्म देश की आजादी से पांच वर्ष पूर्व हुआ था। उसी  वर्ष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देशवासियों को अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया था।  26 मार्च 1942 को रामनवमी के दिन रांची जिले के कांके प्रखंड के उरुगुट्टू गांव में एक घासी परिवार में हुआ था। इसी गांव से उन्होंने अपना प्रारंभिक शिक्षा पूरा किया था। यही की गलियों में अपने बचपन के मित्रों के साथ घूमा करते थे । मौज मस्ती किया करते थे । और गाया भी करते थे। आज भी वे बचपन की बातों को बताकर खुद भी आनंदित होते हैं और दूसरे को भी आनंदित कर देते हैं। उन्होंने गांव के मैदान आखरा में लोक संगीत सीखा।  उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में किया था। लेकिन बाद में कालखंड मेंवे 1963 में हेवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन में शामिल हुए। यहीं से वे सेवा निवृत भी हुए।
   उन्होंने पारंपरिक नागपुरी संगीत को संरक्षित करने का प्रयास किया। वह ठेठ नागपुरी गीतों के गायक हैं, जो 1962 से पारंपरिक नागपुरी लोक गीत गा रहे हैं। उन्हें बी.पी. केसरी ने नागपुरी संस्थान में आमंत्रित किया था, जहां उन्हें हनुमान सिंह, बरजू राम, घासी राम महली और दास महली जैसे नागपुरी कवियों की कविता के बारे में पता चला। फिर उन्होंने  बी.पी.केसरी के साथ नागपुरी संगीत रचना शुरू की। महावीर नायक ने 1976 में मंच पर गाना शुरू किया। 1977 में उन्होंने मंच कार्यक्रम आयोजित करना शुरू किया और बुजुर्ग गायकों को गाने का मौका दिया। उन्होंने 1000 से ज्यादा स्टेज शो में गाना गाया है।  उन्हें भिंसरिया के राजा की उपाधि सिमडेगा जिले के लोगों द्वारा दी गई है। उन्होंने ऑडिशन दिया और 1984 में रेडियो और टेलीविजन शो में काम किया। उन्होंने अलग झारखंड राज्य के आंदोलन के लिए कई गीतों की रचना भी की।
     महावीर नायक ने युवा पीढ़ी को पारंपरिक नागपुरी संगीत सिखाने के लिए लोक कलाकार मुकुंद नायक और अन्य कलाकारों के साथ उन्होंने 1985 में कुंजबन संगठन की स्थापना की। वे 1992 में एक शो के लिए ताइवान भी गए।  उन्होंने लगभग 300 गीत लिखे हैं। इसके साथ ही वे पुराने कवियों लिखे  बिखरे पड़े लगभग 5000 गीत संकलित किये।  1993 में दर्पण पत्रिका प्रकाशित की, जिसमें कई पुराने कवियों के लिखे गीत हैं। उनके अनुसार ठेठ नागपुरी संगीत शास्त्रीय संगीत का ही एक रूप है जिनके गीत और नृत्य, झूमर, पावस, उदासी और फगुआ जैसे त्योहारों और मौसमों पर आधारित हैं। इसमें सामाजिक, नैतिकता, संस्कृति और साहित्य शामिल है। महावीर नायक को नागपुरी भाषा साहित्य और गायकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय  योगदान के लिए वर्ष 2022 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 2025 में पद्मश्री सम्मान प्रदान कर सम्मानित किया गया है । इसके साथ ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें विभिन्न संगठनों द्वारा सम्मानित किया गया है।