माता शैलपुत्री की आराधना से भक्तों के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं
(चैत्र नवरात्र के प्रारंभ सह वर्ष प्रतिपदा पर विशेष)

भारत सहित विश्व के जिन देशों में भारतीय मूल के लोग रहते हैं, सबों के लिए चैत्र नवरात्र का पर्व ढेर सारी खुशियां और संकल्पों के लेकर उपस्थित होता है । यह महापर्व 30 मार्च, चैत्र शुक्ल नवमी से प्रारंभ होने जा रहा है। साथ ही हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए नव वर्ष का पहला दिन है। इस दिन संपूर्ण देश में वर्ष प्रतिपदा के रूप में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ उत्सव मनाया जाता है। आज के दिन हर एक भारतीय को नव वर्ष की शुभकामनाएं एक दूसरे को प्रदान करनी चाहिए। इसी पवित्र मास में भगवान राम का त्रेता युग में जन्म हुआ था।
आज माता शैलपुत्री की विशेष पूजा-अर्चना से चैत्र नवरात्र का शुभारंभ होता है। हिमालय की पुत्री होने के कारण माता का नाम शैलपुत्री पड़ा था
आज माता वृषभ पर सवार होकर एक हाथ में त्रिशूल धारण कर दूसरे हाथ से भक्तों को आशीर्वाद दे रही मुद्रा में होती हैं। माता के स्वरूप को अर्थनारीश्वर कहा जाता है । अर्थात माता के रूप में भगवान शिव और पार्वती दोनों समाहित होते हैं। आज माता के इस स्वरूप की पूजा करने वाले उपासकों को भगवान शिव और माता पार्वती दोनों के आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। माता दुर्गा दुर्गति नाशनी है । माता दुर्गा कालनाशनी है ।दुर्गा माता की आराधना से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। समस्त प्राणियों की सुख दात्रि देवी दुर्गा माता की कृपा से उनके भक्तगण सदा आनंद में रहते हैं। माता के भक्त दूसरे को भी आनंद प्रदान करते हैं। नवरात्र का यह पर्व दशहरा के नाम से जनमानस में प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि माता नौ दिनों तक अपने भक्तों की भक्ति प्राप्त कर, भक्तों के सभी प्रकार के कष्ट हर कर माता दसवें दिन विदा होती हैं। संसार में जितने भी प्रकार के सुख, शांति, समृद्धि और वैभव विद्यमान हैं। यह सब कुछ माता की ही कृपा है। माता की आराधना से भक्तों को जन्म जन्म के पाप मुक्ति मिलती हैं।
श्री देवी पुराण में ऐसा वर्णन है कि मां की भक्ति से यश, बल, धर्म ,आयु की वृद्धि होती है। मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। चैत्र नवरात्र अनुष्ठान का हमारे धर्म ग्रंथों में बहुत ही ऊंचा स्थान प्रदान किया गया है। मां पुत्री रूप में हम सभी भक्तों के बीच उपस्थित होती हैं। हम सबों की भक्ति स्वीकार कर सुख, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद देकर जाती हैं। साथ ही माता यह भी वादा कर जाती हैं कि अगले साल मैं पुनः आऊंगी। अपने भक्तों के प्रति मां का यह स्नेह अद्भुत और बेमिसाल है।
नवरात्र पर्व का हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों में बहुत ही महत्व है। आज दुनिया में जिस तरह की भी शक्तियां विद्यमान है। सभी दुर्गा माता की ही तेज से उत्पन्न हुई । मां की कृपा के बिना कोई भी शक्ति गतिशील नहीं हो सकती है। माता के उपासकों को यह विशेष रूप से जानना चाहिए कि नवरात्र में मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है। प्रथम दिन शैलपुत्री माता। दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी माता। तीसरे दिन चंद्रघंटा माता। चौथे दिन कुष्मांडा माता। पांचवें दिन स्कंदमाता माता । छठे दिन कात्यानी माता। सातवें दिन कालरात्रि माता । आठवें दिन महागौरी माता और नवमी दिन सिद्धिदात्री माता की पूजा होती है। माता के हर रूपों का एक गौरवशाली इतिहास है, जो हमारी आंतरिक आध्यात्मिक शक्ति को ऊर्जा वान बनाती हैं। दुर्गा सप्तशती में यह बात दर्ज है कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है। किंतु माता कभी भी कुमाता नहीं हो सकती है। इस छोटे से वाक्य में हिंदू दर्शन की बहुत बड़ी बात छुपी हुई है। इसलिए हमारी रीति - रिवाज और धर्म संस्कृति में प्रारंभ से ही माता का ख्याल रखने के लिए कहा गया है। यह पर्व हमें दूसरों की मदद करने, दूसरों की भलाई करने और विश्व बंधुत्व की सीख भी प्रदान करता है।
पाप और पुण्य दोनों मां के ही पुत्र हैं। दोनों को मां समान रूप से जन्म देती हैं। लेकिन एक अपने प्रारब्ध कर्म के कारण पाप में परिवर्तित होता और दूसरा पुण्य में। जब सृष्टि में पाप बढ़ जाते हैं। तब पुण्य जनों के उद्धार के लिए माता प्रकट होती है। नवरात्र का पर्व सत्य और असत्य पर आधारित है। असत्य कितना भी विशाल क्यों ना हो जाए ? वह कालजयी नहीं हो सकता है। उसे एक न एक दिन सत्य के हाथों पराजित होना ही होता है। नवरात्र का पर्व हम सबों को सत्य के साथ खड़े होने की सिख प्रदान करता है। यह पर्व असत्य पर सत्य की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। यह पर्व सिर्फ भारत देश तक ही सीमित नहीं है। हिंदू धर्म को मानने वाले विश्व भर में जहां-जहां भी हैं, सभी नवरात्र व दशहरा का पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। देश में प्रचलित सभी पर्वों के बीच नवरात्र पर्व का एक विशेष स्थान और महत्व है। इसे सब लोग बड़े ही धूमधाम के साथ और मिलजुल कर मनाते हैं। यह पर्व हम सबों को एक साथ मिलकर रहने की भी सीख प्रदान करता है।
देवी पुराण में वर्णन है कि अहंकारी महिषासुर को यह पता ही नहीं था कि उसके पास जो भी शक्तियां विद्यमान थीं। सभी मां की कृपा से ही प्राप्त हुई थी। महिषासुर की शक्तियां, मां की तेज का एक अंश भी नहीं था। उसे इस अंश पर इतना गुमान था। मां उन्हें अपनी पूर्ण शक्ति को प्रदर्शित करने का अवसर दे रही थीं। माता ने उसे अपनी गलती स्वीकार करने का भी अवसर पर अवसर प्रदान करती चली जा रही थीं। इसके बावजूद महिषासुर को अपने अहंकार का भान ही नहीं हो रहा था। अंततः मां अपने विराट रूप में उपस्थित हुई और पलक झपकते ही उसका सर्वनाश कर दी थीं। नवरात्र का विशेष रूप से संदेश यह है कि मनुष्य के अंदर विद्यमान काम, क्रोध,मद, लोभ और मोह का संपूर्णता में त्याग।
महिषासुर का अंत अर्थात असत्य का अंत के समान है। इसका अभिप्राय है कि मनुष्य के अंदर विद्यमान पंच विकारों अंत। जो मनुष्य इन पंच विकारों से मुक्त होकर निर्लिप्त और साक्षी भाव से जीवन जीते हैं। उन्हें मां की कृपा प्राप्त होती है। वे इस संसार में रहकर सभी प्रकार के सुखों को भोगते हैं। सदा कष्टों से मुक्त रहते हैं। दीर्घायु बनते हैं। और अंत में मां में समाहित हो जाते हैं। ऐसे भक्त सदा सदा के लिए आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाते हैं।नवरात्र का अनुष्ठान पूरी तरह आध्यात्मिक और मानसिक नवजागरण का है।
माता के श्री चरणों में चढ़ने वाले फल - फूल आदि सभी बाह्य पूजा है। मां मन की पूजा स्वीकार करती हैं। मन में अगर कलमष है, बाहर खिले हुए फूल हैं, ऐसी पूजा का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। मन मस्तिष्क पंच विकारों से मुक्त हो, निर्मल हो, हर्षित हो । इसे ही मां स्वीकार करती हैं। यह अनुष्ठान भक्तों के लिए एक संकल्प का पर्व है। पंच विकारों से मुक्ति ही सच्चे अर्थों में मां के प्रति यही पूजा सच्ची पूजा है। साथ ही यह पर्व हम सभी को यह भी सीख देता है कि हमसे ऐसी कोई भूल न हो जिससे समाज की कोई भी नारी शक्ति आहत हो। नवरात्र हम सबों को नारी शक्ति के सम्मान का भी सिख प्रदान करता है। हम सब मिलकर नारी शक्ति का सम्मान करें।