सच्चे अर्थों में आरोग्य की कामना में 'धनतेरस' का उद्देश्य निहित है

( 29 अक्टूबर, 'धनतेरस' एवं  धनवंतरी ऋषि की जयंती पर विशेष)

सच्चे अर्थों में आरोग्य की कामना में 'धनतेरस' का उद्देश्य निहित है

आज के बदले पारिवारिक, सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में सुख, समृद्धि, और शांति के मायने ही बदल गए हैं । लोग वास्तविक सुख, समृद्धि और शांति से दूर होते चले जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर बाजार वाद के  इस दौर ने वैश्विक स्तर पर सब कुछ बदल कर रख दिया है। जबकि सच्चे अर्थों  में आरोग्य की कामना में ही वास्तविक सुख, समृद्धि और शांति निहित है। ‌ हमारे मनीषियों ने बहुत पहले यह बात कह दिया था कि धन से समृद्धि लाई जा सकती है, लेकिन सच्चा सुख और शांति आरोग्य होकर ही प्राप्त किया जा सकता है। कृष्ण पक्ष कार्तिक त्रयोदशी को मनाया जाने वाला 'धनतेरस' का पर्व हम सबों को आरोग्य रहने की सीख प्रदान करता है। ‌ इस धरा पर निवास करने वाले हर मनुष्य के लिए आरोग्य ही उसका सबसे बड़ा धन होता है। 

  भगवान विष्णु का ऋषि धनवंतरी के रूप में रूपांतरण का उद्देश्य यह था कि सृष्टि में निवास करने वाले हर प्राणी आरोग्य हों। इस निमित ऋषि धनवंतरी ने विविध किस्म की जड़ी बूटियों की खोज कर मनुष्य को सदा निरोग रहने का मार्ग प्रशस्त किया था। लेकिन आज मनुष्य धन प्राप्ति के लिए इतना आतुर है कि उससे सारे पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते दूर होते चले जा रहे हैं। आज लोग अत्यधिक धन की लालसा के कारण कई बीमारियों से ग्रसित कर दिया हैं। बीमारी की अवस्था में भी लोग धन कमाने के लिए भी आतुर हैं। एक परंपरा के अनुसार धनतेरस पर लोग चांदी, सोना के आभूषण और पीतल, तांबा, कांशा  से बने बर्तन इसलिए खरीदते हैं कि उनके घर में हमेशा सुख, समृद्धि और शांति बनी रहे।‌ इस परंपरा का वास्तविक अर्थ हमारे आरोग्य से जुड़ा हुआ है। इसलिए हमेशा अपने आरोग्य होने पर ध्यान रखें,यही सबसे बड़ा धन है।
  धनतेरस से संबंधित कई कथाएं प्रचलित है।  इन कथाओं में एक प्रचलित कथा यह है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धनवंतरी ऋषि का जन्म हुआ था । ये आरोग्य के देवता के रूप में पूजे जाते हैं।  ये भगवान विष्णु के अवतार के रूप में भी माने जाते हैं।  इसलिए इस पर्व को धनतेरस के साथ धन त्रयोदशी के नाम से जाना जाता है । हिंदू धर्म शास्त्रों में वर्णन है कि आरोग्य के देवता धनवंतरी ऋषि भगवान विष्णु के अवतार हैं । आरोग्य की कामना को लेकर जो भी याचक भगवान धन्वंतरि की आराधना करते हैं, उन्हें धनवंतरी ऋषि के साथ भगवान विष्णु का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है । याचक आजीवन आरोग्य रहते हैं । आगे हमारे शास्त्रों में  वर्णन है कि भगवान विष्णु सभी का कल्याण चाहने वाले देवता हैं ।‌कल्याण  का यहां अर्थ है, मानवीय जीवन में आरोग्य, सुख, समृद्धि और शांति का वास होना।  मनुष्य के जीवन में सुख समृद्धि और शांति पूर्ण रूप से तभी स्थापित हो सकती है,  जब वह आरोग्य हो। मनुष्य कई प्रकार की बीमारियों से घिरा हुआ  हो, उसके पास ढेर धन हो, तब  उस ढेर सारे धन का क्या मतलब रह जाता है ? इसलिए मनुष्य के जीवन की  पहली प्राथमिकता  आरोग्य होनी चाहिए।
  आरोग्य की अवस्था ही सच्चे अर्थों में सुख, समृद्धि और शांति है ।  इसलिए भगवान विष्णु ने अपना रूपांतरण भगवान धन्वंतरी ऋषि के रूप में किया । उन्होंने मानव कल्याण की कामना को आरोग्य से जोड़ा । धन मनुष्य को ऐश्वर्य प्रदान करता है। आरोग्य होकर, उसका उपभोग कर मनुष्य अपने जीवन में सुख, समृद्धि और शांति महसूस करता है।  इस संदर्भ में विचारणीय यह  है कि आज के भाग  दौड़ भरी जिंदगी में लोग धन  प्राप्ति के लिए ना जाने क्या-क्या गोरख धंधे कर रहे हैं ? धन की प्राप्ति के लिए लोगों की दिनचर्या पूरी तरह चरमरा सी गयी है। धन कमाने  के लिए लोगों का खाना पीना तक  छूट जाता है । लोग दिन और रात रात भर काम में जुटे रहते हैं। काम करना बुरी बात नहीं है।  लेकिन सिर्फ और सिर्फ धन के लिए इतना काम करना, लोगों के स्वास्थ्य के लिए अच्छी बात नहीं है।  इतना कुछ करने के बाद लोग धन तो जरुर कमा लेते हैं।  तब तक उनका आरोग्य छिन जाता है ।  लोगों की यह सबसे बड़ी भूल है।
   आरोग्य से बड़ा जीवन में कोई दूसरा धन नहीं है। ‌ धनतेरस पर्व हम सबों को आरोग्य धन प्राप्ति की सीख प्रदान करता है।  वहीं दूसरी ओर लोग धन कमाने की लालसा में  20 - 25 वर्ष की उम्र से उच्च रक्तचाप, शुगर, हार्ट व अन्य गंभीर बीमारियों की दवाई खाने लगते हैं । लोग धन  जरूर कमा लेते है,  किंतु उस धन को भोगने के लिए शरीर  उपयुक्त नहीं होता है।  धनतेरस के दिन यह  विचार करने की जरूरत है कि शरीर को आरोग्य रखकर ही धन अर्जन करना चाहिए। लोगों को सही मार्ग पर चलकर ही धनोपार्जन करना चाहिए। गलत मार्ग पर चलकर धन उपार्जन नहीं करना चाहिए।  इसी कामना को लेकर भगवान विष्णु ने भगवान धन्वंतरी के  रूप में इस धरा पर अवतार लिया था। ‌
  हिंदू धर्म ग्रंथो के अनुसार समुद्र मंथन से कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को ही माता लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ था।  जिनके हाथों में स्वर्ण कलश था।  माता लक्ष्मी धन  प्रदान करने वाली देवी के रूप में विख्यात है।  इसी दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि का प्रादुर्भाव हुआ था।  उनके हाथों में भी स्वर्ण कलश था।  जो आरोग्य प्रदान करने वाला था।  इन्हीं दोनों बातों के कारण लोग धनतेरस का पर्व मनाते चले आ रहे हैं । अब आगे यह  प्रश्न उठता है कि मनुष्य के जीवन में धन और आरोग्य की क्या उपयोगिता है । इस संबंध में हजारों वर्ष पूर्व हमारे ऋषियों ने सूत्र दिया था कि  धन प्राप्ति से पूर्व आरोग्य की कामना ही श्रेयस्कर है। धन  प्राप्त करने के लिए कर्मों का शुद्धिकरण अत्यंत आवश्यक है। एक मान्यता के अनुसार धन के देवता  कुबेर भी आसुरी प्रवृत्तियों का हरण कर धन को अपने पास सुरक्षित और पवित्र रखा।
   धन और आरोग्य का मतलब कदापि यह नहीं  लगाना चाहिए कि इसका उपयोग स्वयं तक ही सीमित न हो, बल्कि समाज के कल्याण के लिए भी हो । समाज में व्याप्त असमानता यह दर्शाती है कि धन और ऐश्वर्य और आरोग्य का इस्तेमाल स्वयं के लिए ज्यादा हो रहा है । यह बेहद चिंता की बात है।  ईश्वर की कृपा प्राप्त  इस धन रूपी  प्रसाद को समाज की गरीबी मिटाने और खुशहाली लाने में खर्च करना सच्चे अर्थों में  धनतेरस है।  
  इस संबंध में श्री सूक्त में लक्ष्मी के स्वरूपों का विवरण कुछ इस प्रकार मिलता है । प्रकृति की रक्षा आरोग्य की रक्षा करने के समान है।  मनुष्य  को निःस्वार्थ होकर प्रकृति  की रक्षा करनी चाहिए। धन  भय और चिंता से मुक्ति दिलाता है।‌ धन  मनुष्य को आरोग्य और  लंबी उम्र प्रदान करता है । इस संदर्भ में ध्यातव्य यह कि धन का उपार्जन सत्य  से किया गया हो।
 एक प्रचलित उक्ति से इस आलेख को विस्तार देना चाहता हूं कि धन खोया तो कुछ नहीं खोया।  स्वास्थ्य खोया तो कुछ खोया।‌ अगर चरित्र खोया तो सब कुछ खो दिया ।  कुबेर धन के देवता हैं,किंतु आसुरी शक्तियों के हरण  को उपदेश देते हैं । धन कुबेरों को प्राप्त धन पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों का प्रतिफल है । इसलिए धन को समाज कल्याण और दूसरे को आरोग्य बनाने में लगाना चाहिए। ऐसी मान्यता हिंदू धर्म ग्रंथो में वर्णित है।  धन और आरोग्य की रक्षा सच्चे अर्थों में सत्य मार्ग पर चलकर और जन  कल्याण कर ही की जा सकती है। इससे  मनुष्य का यह लोक और परलोक भी सुधरता है। आगे धीरे-धीरे कई जन्मों के सुखों को भोंकते हुए अंत में  मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो पाता है।