हजारीबाग में मंगला जुलूस निकालने की परंपरा की शुरुआत 1955 से प्रारंभ हुई थी
रामनवमी जुलूस निकलने के लगभग सैंतीस वर्षों बाद ही मंगला जुलूस निकालने की परंपरा की शुरुआत हो पाई थी ।

हजारीबाग रामनवमी के शोधकर्ता सह स्तंभकार विजय केसरी ने कहा कि होली पर्व के समापन के साथ ही हजारीबाग की इंटरनेशनल रामनवमी के 'मंगल जुलूस' की तैयारी शुरु हो जाती है। 18 मार्च को बड़े ही धूमधाम के साथ विभिन्न रामनवमी समितियों द्वारा पहला मंगल जुलूस हजारीबाग में निकाल जाएगा। स्थानीय लोग मंगला जुलूस को मिनी रामनवमी के नाम से भी संबोधित कर गर्व का अनुभव करते हैं। हजारीबाग इंटरनेशनल रामनवमी जुलूस का इतिहास जितना गौरवशाली है, उतना ही हजारीबाग का मंगला जुलूस का इतिहास भी गौरवपूर्ण है । हजारीबाग के मंगला जुलूस का इतिहास रामनवमी जुलूस से जुड़ा है । एक शोध के अनुसार मंगला जुलूस निकालने की परंपरा की शुरुआत 1955 के आसपास हुई थी।
आगे उन्होंने कहा कि रामनवमी जुलूस निकलने के लगभग सैंतीस वर्षों बाद ही मंगला जुलूस निकालने की परंपरा की शुरुआत हो पाई थी । यह बात प्रचलित है कि मंगला जुलूस वृहद रामनवमी जुलूस की पूर्व तैयारी की भूमिका होती है। रामनवमी जुलूस का विस्तार जैसे-जैसे बढ़ता गया । उसी तरह इसकी लोकप्रियता भी बढ़ती गई । बृहद रामनवमी जुलूस के अवसर पर बेहतर ढंग से शस्त्र प्रदर्शन हो, इस निमित्त हर मंगलवार को जुलूस निकालने की परंपरा शुरू हुई थी।
चूंकि रामनवमी से पूर्व हजारीबाग में निकलने वाले मंगला जुलूस का इतिहास रामनवमी पर्व से जुड़ा हुआ है। इसलिए यह जानना जरूरी हो जाता है कि हजारीबाग में रामनवमी की शुरुआत कैसे हुई ? इसकी कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। हजारीबाग जेपीएम मार्ग निवासी, स्वर्गीय गुरु सहाय ठाकुर ने 1918, में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जन्मदिन (चैत्र नवमी) पर अपने पांच मित्रों के साथ मिलकर पहला महावीरी झंडा का जुलूस निकाला था। स्वर्गीय गुरु सहाय ठाकुर ने हाथ में महावीरी झंडा लेकर बाजे गाजे के साथ नगर के विभिन्न मंदिरों का परिक्रमा कर जुलूस का समापन किया था । इस जुलूस में शामिल उनके मित्रों ने बढ़ चढ़कर उन्हें सहयोग किया था। तब शायद किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि यह जुलूस आने वाले समय में हजारीबाग की रामनवमी जुलूस के रूप में परिवर्तित हो जाएगी। जिसमें हजारों की संख्या में लोग सम्मिलित होंगे।