गुरु गोविंद सिंह के चार पुत्रों की शहादत सदा देशवासियों को गौरवान्वित करता रहेगा 

(26 दिसंबर, 'वीर बालक दिवस' पर विशेष)

गुरु गोविंद सिंह के चार पुत्रों की शहादत सदा देशवासियों को गौरवान्वित करता रहेगा 

सिख पंथ के दसवें गुरु गोविंद सिंह के चार पुत्रों की शहादत सदा देशवासियों को गौरवान्वित करता रहेगा जिस। जिस उम्र में गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों ने अपनी शहादत दी थी, विश्व इतिहास में अन्यत्र दूसरा उदाहरण कहीं नहीं मिलता है। बच्चें जिस उम्र में स्कूल में पढ़ना लिखना शुभारंभ करते हैं, उस उम्र में हिंदू धर्म की रक्षार्थ गुरु गोविंद सिंह जी के चार  पुत्रों क्रमशः अजीत सिंह, जुझार सिंह,बाबा फतेह सिंह और जोरावर सिंह ने अपने  प्राणों की आहुति देकर  अद्वितीय वीरता का परिचय दिया था। उन चारों बालको के चेहरे पर कोई शिकन तक न थी बल्कि हंसते-हंसते चारों  बालकों ने अपनी शहादत दे दी थी।
 सन्  1705 में चमकौर की लड़ाई में अजीत सिंह और जुझार सिंह ने औरंगजेब के सिपाहियों के साथ लड़ते-लड़ते अपनी शहादत दे दी थी। वहीं दूसरी ओर बाबा फतेह सिंह और जोरावर सिंह को औरंगजेब के सिपाहियों ने जिंदा दीवार में चुनवा दिया था।  आज की बदली सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में अजीत सिंह, जुझार सिंह, बाबा फतेह सिंह और जोरावर सिंह जैसे वीर बालकों की शहादत से नई  पीढ़ी को सबक लेने की जरूरत है।  नई पीढ़ी के बच्चें पढ़ाई में अव्वल तो जरूर हो रहे हैं।  लेकिन अधिकांश  बच्चों में वीरता और नैतिकता का घोर  अभाव देखा जा रहा है ।  यह बेहद चिंता की बात है। भारत में जिस तरह विदेशी शक्तियां एक  के बाद एक साजिश रचती चली जा रही  हैं , इससे देश की एकता और अखंडता प्रभावित हो रही हैं । ऐसे में भारत के बच्चों को फिर से अपनी  वीरता और अदम्य साहस का परिचय देना होगा।  कल इन्हीं बच्चों के कंधों पर देश की जवाबदेही होगी ।‌ अगर ये  बच्चें वीर और अदम्य साहस से से ओतप्रोत होंगे, तभी भारत का भविष्य उज्जवल होगा।
     देशवासियों के  धर्म को अक्षुण्ण बनाए रखना देशवासियों का प्रथम कर्तव्य होता है।  देश की रीति रिवाज, परंपरा, रहन-सहन, बोलचाल की भाषा, धर्म आदि  परंपरागत संस्कृति  ही उसकी पहचान होती है।  अगर कोई आक्रांत उस पहचान को मिटाने की कोशिश करता है, तब ऐसी परिस्थिति  में देशवासियों को एकजुट होकर आक्रांत को जड़ से मिटा देने का संकल्प लेकर तुरंत  संघर्ष शुरू कर देना चाहिए। यह संघर्ष तब तक जारी रहना चाहिए, जब तक कि आक्रांत का अस्तित्व समाप्त न हो जाए। 
    इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर 9 जनवरी 2022 को, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के दिन, देश  के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि हर वर्ष 26 दिसंबर को श्री गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों  क्रमशः  जोरावर सिंह,   फतेह सिंह, अजीत सिंह, और जुझार सिंह  की शहादत को  यादगार बनाने और प्रेरणा लेने हेतु 'वीर बल दिवस' के रूप में मनाया जाएगा। प्रधानमंत्री की यह घोषणा निश्चित तौर पर तारीफें काबिल है।  गुरु गोविंद सिंह जी के चारों पुत्रों की शहादत से देश के  बच्चों को प्रेरणा लेने की जरूरत है । 
    देशवासियों को यह जानना चाहिए कि सन् 1705
में 21 दिसंबर से 27 दिसंबर के बीच गुरु गोविंद सिंह जी का पूरा परिवार हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। गुरु गोविंद सिंह जी जब मात्र नौ वर्ष के थे, तब उन्होंने कश्मीरी पंडितों की रक्षार्थ अपने पिता गुरु तेग बहादुर को  कहा था कि हिंदू धर्म की रक्षा के लिए आपको अपने प्राणों की आहुति देना समय की मांग है। वीर बालक गुरु गोविंद सिंह की यह बात सुनकर दरबार में बैठे सारे लोग स्तब्ध रह गए थे । इसके बाद गुरु तेग बहादुर जी ने दिल्ली की चांदनी चौक में औरंगजेब की सत्ता को ललकारा था।  उन्होंने किसी भी कीमत में धर्म परिवर्तन की बात को 
अस्वीकार कर दिया था । बदले में औरंगजेब के सिपाहियों ने गुरु तेग बहादुर जी का चांदनी चौक में सर कलम कर दिया था। गुरु तेग बहादुर की इस शहादत का संपूर्ण भारतवर्ष पर बहुत ही अनुकूल प्रभाव पड़ा था।  देशवासियों में औरंगजेब की सत्ता के खिलाफ एक जबरदस्त आवाज बुलंद हुई थी। गुरु तेग बहादुर जी के शहादत के बाद  गुरु गोविंद सिंह जी को सिख पंथ का दसवां गुरु बनाया गया था।  आगे उन्होंने इस गुरु परंपरा को समाप्त कर गुरु ग्रंथ साहिब को ही गुरु मानने की परंपरा का शुभारंभ किया था।
    देशवासियों को सन 1705 में  चमकौर में गुरु गोविंद सिंह और औरंगजेब के बीच हुई लड़ाई के इतिहास को जानना चाहिए। कैसे गुरु गोविंद सिंह जी का सारा परिवार एक-एक कर इस युद्ध में अपनी प्राणों की आहुति देते चले गए थे ।‌ सरसा नदी पर जब गुरु गोबिंद सिंह जी परिवार जुदा हो रहे थे, तो एक ओर जहां बड़े साहिबजादे गुरु जी के साथ चले गए, वहीं दूसरी ओर छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह, माता गुजरी जी के साथ रह गए थे। उनके साथ न कोई सैनिक था और न ही कोई उम्मीद थी।‌ जिसके सहारे वे परिवार से वापस मिल सकते थे ,अचानक रास्ते में उन्हें गंगू मिल गया, जो किसी समय पर गुरु महल की सेवा करता था। गंगू ने उन्हें यह आश्वासन दिलाया कि वह उन्हें उनके परिवार से मिलाएगा और तब तक के लिए वे लोग उसके घर में रुक जाएं।
       माता गुजरी जी और साहिबजादे गंगू के घर चले तो गए लेकिन वे गंगू की असलियत से वाकिफ नहीं थे। गंगू ने लालच में आकर तुरंत वजीर खां को गोबिंद सिंह की माता और छोटे साहिबजादों के उसके यहां होने की खबर दे दी, जिसके बदले में वजीर खां ने उसे सोने की मोहरें भेंट की। खबर मिलते ही वजीर खां के सैनिक माता गुजरी और 7 वर्ष की आयु के साहिबजादा जोरावर सिंह और 5 वर्ष की आयु के साहिबजादा फतेह सिंह को गिरफ्तार करने गंगू के घर पहुंच गए। उन्हें लाकर ठंडे बुर्ज में रखा गया और उस ठिठुरती ठंड से बचने के लिए कपड़े का एक टुकड़ा तक ना दिया। रात भर ठंड में ठिठुरने के बाद सुबह होते ही दोनों साहिबजादों को वजीर खां के सामने पेश किया गया, जहां भरी सभा में उन्हें इस्लाम धर्म कबूल करने को कहा गया। कहते हैं सभा में पहुंचते ही बिना किसी हिचकिचाहट के दोनों साहिबजादों ने ज़ोर से जयकारा लगा “जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल”।
     यह देख सब दंग रह गए, वजीर खां की मौजूदगी में कोई ऐसा करने की हिम्मत भी नहीं कर सकता लेकिन गुरु जी की नन्हीं जिंदगियां ऐसा करते समय एक पल के लिए भी ना डरीं। सभा में मौजूद मुलाजिम ने साहिबजादों को वजीर खां के सामने सिर झुकाकर सलामी देने को कहा, लेकिन इस पर उन्होंने जो जवाब दिया वह सुनकर सबने चुप्पी साध ली।
दोनों ने सिर ऊंचा करके जवाब दिया कि ‘हम अकाल पुरख और अपने गुरु पिता के अलावा किसी के भी सामने सिर नहीं झुकाते। ऐसा करके हम अपने दादा की कुर्बानी को बर्बाद नहीं होने देंगे, यदि हमने किसी के सामने सिर झुकाया तो हम अपने दादा को क्या जवाब देंगे जिन्होंने धर्म के नाम पर सिर कलम करवाना सही समझा, लेकिन झुकना नहीं’।वजीर खां ने दोनों साहिबजादों को काफी डराया, धमकाया और प्यार से भी इस्लाम कबूल करने के लिए राज़ी करना चाहा, लेकिन दोनों अपने निर्णय पर अटल थे।  आखिर में दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवारों में चुनवाने का ऐलान किया गया। कहते हैं दोनों साहिबजादों को जब दीवार में चुनना आरंभ किया गया तब उन्होंने ‘जपुजी साहिब’ का पाठ करना शुरू कर दिया और दीवार पूरी होने के बाद अंदर से जयकारा लगाने की आवाज़ भी आई।  ऐसा कहा जाता है कि वजीर खां के कहने पर दीवार को कुछ समय के बाद तोड़ा गया, यह देखने के लिए कि साहिबजादे अभी जिंदा हैं अथवा नहीं। तब दोनों साहिबजादों के कुछ श्वास अभी बाकी थे, लेकिन मुगल मुलाजिमों का कहर अभी भी जिंदा था। उन्होंने दोनों साहिबजादों को जबर्दस्ती मौत के गले लगा दिया। उधर दूसरी ओर साहिबजादों की शहीदी की खबर सुनकर माता गुजरी जी ने अकाल पुरख को इस गर्वमयी शहादत के लिए शुक्रिया किया और अपने ।
बाबा फतेह सिंह, जोरावर सिंह अजीत सिंह और जुझारू सिंह की शहादत पर हमेशा देशवासियों का मस्तक गौरवान्वित होता रहेगा।