‘फिर उगना’ को 'साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार' की घोषणा से गौरवान्वित हुआ झारखंड
नई पीढ़ी के लेखकों के लिए पार्वती तिर्की एक उदाहरण बनकर सामने आई हैं। उन्होंने मात्र 32 साल की उम्र में जो उपलब्धि हासिल की है, कम ही रचनाकारों को नसीब हो पाता है ।

झारखंड की चर्चित युवा कवयित्री डॉ पार्वती तिर्की को 'फिर उगना' कविता संग्रह के लिए साहित्य अकादमी द्वारा 'युवा पुरस्कार'की घोषणा से संपूर्ण झारखंड गौरवान्वित हुआ है। नई पीढ़ी के लेखकों के लिए पार्वती तिर्की एक उदाहरण बनकर सामने आई हैं। उन्होंने मात्र 32 साल की उम्र में जो उपलब्धि हासिल की है, कम ही रचनाकारों को नसीब हो पाता है । वह छात्र जीवन से कविता लेखन से जुड़ी रही हैं और नियमित रूप से विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छपती रही हैं। तिर्की की रचनाएं प्रकृति और मनुष्य के बीच के सामंजस्य को लेकर एक नई बात कहती नजर आती हैं ।उनकी कविताएं समाज में हो रहे उथल-पुथल, आम आदमी के जीवन और उनके झंझावतों से लड़ने की प्रेरणा देती हैं ।
उनका जन्म 16 जनवरी 1994 को झारखंड के गुमला जिले के कुडुख आदिवासी परिवार में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा गुमला के जवाहर नवोदय विद्यालय में हुई। इसके बाद उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से हिन्दी साहित्य में स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद वहीं के हिन्दी विभाग से ‘कुडुख आदिवासी गीत : जीवन राग और जीवन संघर्ष’ विषय पर पीएचडी की डिग्री हासिल की। वर्तमान में वह रांची के राम लखन सिंह यादव कॉलेज, रांची विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं। पार्वती तिर्की जितनी अच्छी रचनाकार हैं, उतनी ही अच्छी एक पाठिका भी हैं। वह हिंदी भाषा साहित्य सहित विभिन्न भाषाओं के साहित्य में क्या कुछ लिखा जा रहा है , निरंतर पढ़ती रहती हैं। यही कारण है कि उनकी हर एक रचना एक नई वैचारिक दृष्टि दे जाती है।
तिर्की जी का बचपन से ही लिखने और पढ़ने की ओर विशेष रूप से रूझान रहने के कारण ही उन्हें साहित्य अकादमी द्वारा उनके एक महत्वपूर्ण कविता संग्रह ‘फिर उगना’ के लिए साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार-2025 से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गयी है। साहित्य अकादमी द्वारा इस घोषणा के बाद डॉ पार्वती तिर्की ने कहा कि 'उन्होंने कविताओं के माध्यम से संवाद की कोशिश की है। उन्हें खुशी है कि इस संवाद का सम्मान हुआ है। संवाद के जरिए विविध जन संस्कृतियों के बीच तालमेल और विश्वास का रिश्ता बनता है। इसी संघर्ष के लिए लेखन है। इसका सम्मान हुआ है। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा है।' उपरोक्त बातों के माध्यम से पार्वती तिर्की ने एक बड़ी बात नए उभरते लेखकों के संबंध में कही है कि लेखन एक तरह से संवाद है, जो पाठकों को एक नई दृष्टि प्रदान करता है। उनकी रचनाओं में एक दर्शन है। गहराई है। झारखंड की वेशभूषा,रहन सहन, रीति रिवाज, भाषा और संस्कार निहित हैं। इन सबों के साथ लोग प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठा कर अपने जीवन को रोशन कर सकें।
देश के सुविख्यात राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने इस उपलब्धि पर कहा कि 'युवा प्रतिभा का सम्मान गर्व की बात है।उनकी पहली पुस्तक का प्रकाशन मेरे ही प्रकाशन में हुआ था। साहित्य अकादमी द्वारा पार्वती तिर्की का चर्चित कविता संग्रह 'फिर उगना' को युवा पुरस्कार 2025 से सम्मानित किये जाने की घोषणा हुई है। निश्चित तौर पर यह गर्व की बात है। तिर्की जी का लेखन यह साबित करता है कि परंपरा और आधुनिकता एक साथ कविता में जी सकती है। उनकी कविताएं बताती हैं कि आज हिन्दी कविता में नया क्या हो रहा है और कहां से हो रहा है? उनको साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित किया जाना इस बात की पुष्टि करता है कि कविता का भविष्य सिर्फ शहरों या स्थापित नामों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह वहां भी जन्म ले रही है, जहां भाषा, प्रकृति और परंपरा का रिश्ता अब भी जीवित है।'
‘फिर उगना’ पार्वती तिर्की की पहली काव्य-कृति है। यह वर्ष 2023 में राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित हुई थी। इस संग्रह की कविताएं सरल, सच्ची और संवेदनशील भाषा में लिखी गयी हैं। इस कविता संग्रह की हर एक कविताएं एक नई बात कहती नजर आती हैं। ये कविताएं पढ़ने वालों में सकारात्मकता का बोध भी पैदा कर जाती है। जीवन के संघर्ष और झंझावातों के बीच रहकर भी प्रकृति के साथ तालमेल कर प्रसन्न कैसे रहा जाए , इसकी भी सीख दे जाती हैं। कविता की हर एक पंक्ति पाठकों को सीधे संवाद की तरह महसूस होती है। जैसे लगता है कि हर एक पंक्ति पाठकों की मन की बातें कर रही हों। उनकी पंक्तियां उसके सुख-दुःख, दर्द - पीड़ा को महसूस कर रही हो और सुन भी रही है। इसके साथ ही उनकी पंक्तियां उसे ढांढस भी दे रही हैं । जैसे ये पंक्तियां सिर्फ कविता की एक पंक्ति भर नहीं है बल्कि एक मां की गोद में बिठाकर उसे सहला भी रही है। उनकी पंक्तियां जीवन की जटिलताओं को काफी सहज ढंग से कहने में सक्षम हैं।
उनकी कविताओं में धरती, पेड़, चिड़िया, चांद-सितारे और जंगल सिर्फ प्रतीक नहीं हैं। वे कविता के भीतर एक जीवंत दुनिया की तरह मौजूद हैं। पार्वती तिर्की अपनी कविताओं में बिना किसी कृत्रिम सजावट के आदिवासी जीवन के अनुभवों को कविता का हिस्सा बनाती हैं। यह बात उन्हें अन्य रचनाकारों से अलग कर जाती हैं। वे आधुनिक सभ्यता के दबाव और आदिवासी संस्कृति की जिजीविषा के बीच चल रहे तनाव को भी गहराई से रेखांकित करती हैं। उनकी रचनाओं में झारखंड की विविध आदिवासी संस्कृति की झलक साफ दिखती हैं । उनकी रचनाओं में आदिवासी वेशभूषा, रहन-सहन और संस्कृति की मौजूदगी यह बताती है कि उन्हें इन प्रकृति के गुणों पर बड़ा गर्व है। उन्होंने उच्चतर शिक्षा के लिए अन्य प्रदेश में छलांग जरूर लगायी, वहां से उन्होंने ज्ञान जरूर हासिल किया, लेकिन अपनी संस्कृति, अपनी वेशभूषा, रहन सहन और भाषा को अपनी आत्मा में बहुत ही प्यार से संजो कर रखा। और यही प्यार और दुलार अपनी पंक्तियों में पिरो देती हैं ,जो सीधे पाठकों से संवाद करती रहती हैं।
पार्वती की विशेष अभिरुचि कविताओं और लोकगीतों में है। वे कहानियां भी लिखती हैं। उनकी कहानियों में भी वही बात दिखती हैं, जो कविताओं में रहती हैं। पार्वती तिर्की जितनी अच्छी एक कवयित्री हैं ,उतनी ही अच्छी एक कथाकार भी हैं। उनकी कहानी भी विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में निरंतर छपती रहती हैं। उम्मीद है कि उनके प्रकाशित अन्य कविता संग्रह की तरह उनकी कहानियां भी एक कहानी संग्रह के रूप में सामने आए। उनकी रचनाएं हिन्दी की अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और वेब-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
समग्रता में देखा जाए तो पार्वती तिर्की की कविताओं में प्रकृति और आदिवासी जीवन-दृष्टि की झलक मिलती है। हिन्दी कविता में वर्तमान युवा पीढ़ी के बीच पार्वती तिर्की का स्वर अलग से पहचाना जा सकता है। उनकी कविताओं में आदिवासी जीवन-दृष्टि, प्रकृति और सांस्कृतिक स्मृतियों का वह रूप सामने आता है,जो अब तक मुख्यधारा के साहित्य में बहुत कम दिखाई देता रहा है। यह न केवल उनके रचनात्मक योगदान का सम्मान है, बल्कि हिन्दी कविता के निरन्तर समृद्ध होते हुए भूगोल और अनुभव संसार के विस्तार की स्वीकृति भी है। उनकी हर एक रचना के पात्र हमारे आसपास ही दिखाई पड़ते हैं। उनकी रचना के पात्रों से हम सब रोज मिलते हैं, लेकिन उन पात्रों की पीड़ा, चिलचिलाती धूप में पसीना बहाते,भूख प्यास दौड़ते फांदते श्रमिकों के क्रंदन से अनजान होते हैं। पार्वती तिर्की की रचनाएं ऐसे संघर्षरत लोगों की आवाज बनकर सामने आई है। भाषा की सहजता और सरलता इतनी कि साधारण से साधारण पाठक के लिए भी ग्राही हो जाता है।