iFOREST का राज्य-स्तरीय कार्यशाला : राज्य के लिए कोयले पर निर्भर अर्थव्यवस्था से हरित ऊर्जा और औद्योगिक केंद्र में बदलने का एक बड़ा अवसर
झारखंड में हजारों एकड़ जमीन पर कोयला निकाला जाता है. इससे लाखों लोग जुड़े हैं. उनका भविष्य भी इसी से है. ऐसे में एक अनुसंधान की जरूरत है, जो गैर पारंपरिक ऊर्जा की संभावना पर विशेष फोकस करे.

पर्यावरण थिंक टैंक iFOREST ने रांची में 'धनबाद में न्यायसंगत परिवर्तन (जस्ट ट्रांजिशन) और झारखंड में हरित ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी) भविष्य' पर एक राज्य-स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया. इसमें दामोदर घाटी के न्यायसंगत परिवर्तन रोडमैप, राज्य की नवीकरणीय ऊर्जा (रिनुअल एनर्जी) क्षमता और इसके नीतिगत परिस्थिति को दर्शाते हुए तीन रिपोर्ट जारी की.
भारत का पारंपरिक ऊर्जा केंद्र झारखंड आज ऊर्जा परिवर्तन के कगार पर है. भारत की कोयला राजधानी धनबाद करीब 43 मिलियन मीट्रिक टन कोयला उत्पादन करता है. यह झारखंड के कुल कोयला उत्पादन का 25% है. एक अनुमान बताते हैं कि इसकी दो-तिहाई खदानें 2030 तक बंद हो जायेंगी. आसपास के जिलों बोकारो और रामगढ़ में भी संसाधनों की कमी और खदानों से लाभ कम होने के मामले आ रहे हैं. iFOREST के अध्ययन बताते हैं कि यह राज्य के लिए कोयले पर निर्भर अर्थव्यवस्था से हरित ऊर्जा और औद्योगिक केंद्र में बदलने का एक बड़ा अवसर है. जिससे भारत अपने जीरो इमीशन के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है.इस मौके पर मुख्य अतिथि राज्यसभा सदस्य महुआ माजी ने कहा कि गैर पारंपरिक ऊर्जा से होने वाले नुकसान का आकलन भी करना चाहिए. ऊर्जा के जो भी क्षेत्र हैं, उसका कहीं ना कहीं नुकसान है. झारखंड में हजारों एकड़ जमीन पर कोयला निकाला जाता है. इससे लाखों लोग जुड़े हैं. उनका भविष्य भी इसी से है. ऐसे में एक अनुसंधान की जरूरत है, जो गैर पारंपरिक ऊर्जा की संभावना पर विशेष फोकस करे. झारखंड में भी पूर्व से जो गैर पारंपरिक ऊर्जा के स्रोत रहे हैं. उसका नुकसान भी पहले देखा गया है.
मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद महुआ माजी ने इस मौके पर कहा कि हम इस बारे में पर्याप्त बात नहीं करते कि कोयला खनन और कोयला जलाना पर्यावरण के लिए कितना खतरनाक है. सारंडा जैसे समृद्ध वन क्षेत्र में 700 पहाड़ियां हैं. खनन के कारण कृषि और पर्यावरण भी प्रभावित होती है. खराब पर्यावरण अंततः नौकरियों को प्रभावित कर सकता है. सामाजिक अशांति पैदा कर सकता है. हमें स्वच्छ ऊर्जा की ओर रुख करना होगा और अत्यधिक उपभोग की अपनी संस्कृति को कम करना होगा. पर्यावरण की रक्षा का यही बेहतर तरीका हो सकता है.
वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिव अबु बक्कर सिद्दीख ने कहा कि झारखंड भारत का पहला राज्य है जिसने जस्ट ट्रांजिशन टॉस्क फोर्स का गठन किया. हम न्यायसंगत परिवर्तन की जरूरत को समझते हैं. न्यायसंगत और परिवर्तन दोनों शब्द समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. परिवर्तन को कोई नहीं रोक सकता. लेकिन 'न्यायसंगत' शब्द को समझना जरूरी है. इसका अर्थ है समता और सभी के लिए न्याय है. इसे लागू करना ही चुनौती है. इसके लिए एक सहभागी अर्थव्यवस्था की आवश्यकता है. जहां हम सभी मिलकर काम करें.
श्रम, रोजगार एवं कौशल विभाग के सचिव जीतेंद्र सिंह ने कहा कि बात केवल एक आर्थिक परिवर्तन की नहीं है. यह एक सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का भी मामला है. यदि हम ऊर्जा पारिस्थिति तंत्र को तैयार किए बिना अपने लोगों को हरित कौशल का प्रशिक्षण देते हैं, तो इससे विस्थापन होगा. यदि हम अपनी ऊर्जा में विविधता लाते हैं और अपने लोगों को बहुत देर से प्रशिक्षित करते हैं, तो इससे सामाजिक अशांति भी पैदा हो सकती है. इस परिवर्तन के लिए एक समग्र, स्थायी परिवर्तन के लिए बहु-विषयक दृष्टिकोण की आवश्यकता है.
आइ-फॉरेस्ट के अध्यक्ष और सीइओ चंद्रभूषण ने कहा कि दामोदर घाटी ने अतीत में देश को कोयले से ऊर्जा प्रदान की है. भविष्य में भी यह भारत को ग्रीन हाइड्रोजन और सौर ऊर्जा से ऊर्जा प्रदान कर सकती है. इसे प्राप्त करने के लिए हमें इसकी क्षमता का पुनर्मूल्यांकन करना होगा. दामोदर घाटी को भारत की रूर घाटी के रूप में जाना जाता है. जर्मनी का रूर एक औद्योगिक क्षेत्र है, जहां न तो ताप विद्युत है और न ही कोयल आधारित ऊर्जा. इसकी अर्थव्यवस्था विविध है. उन्होंने इसकी योजना 20 से 30 वर्षों की अवधि में बनाई थी. यदि हमें दामोदर घाटी का कायाकल्प करना है, इसके लिए एक ठोस योजना की जरूरत है. जिसे अभी शुरू किया जाना चाहिए.
झारखंड जस्ट एनर्जी टॉस्क फोर्स के चेयरमैन अजय कुमार रस्तोगी ने भी इस मौके पर विचार रखा. इससे पूर्व आइ-फॉरेस्ट की निदेशक श्रेष्ठा बनर्जी ने विषय प्रवेश कराया. झारखंड में कोयला खनन बंद होने के बाद की स्थिति से अवगत कराया.
iFOREST रिपोर्ट की मुख्य बातें:
कोयला अर्थव्यवस्था: धनबाद में, कोयला खनन जिले के आर्थिक उत्पादन में केवल 8% का योगदान देता है. यहां 1.4 लाख औपचारिक और अनौपचारिक श्रमिक कोयला खनन और उससे जुड़े उद्योगों पर निर्भर हैं. इसके अलावा, एमएसएमइ समूह और व्यवसाय कोयले पर निर्भर हैं.
भूमि: अगले दशक के भीतर, दामोदर घाटी के धनबाद-बोकारो-रामगढ़ (डीबीआर) औद्योगिक क्षेत्र को 80,000 हेक्टेयर बंजर भूमि और 7,000 हेक्टेयर खनन भूमि का पुनरुद्धार करके एक हरित कोरिडोर में बदला जा सकता है. इसका उपयोग सौर पार्कों, हरित औद्योगिक पार्कों और जलवायु-अनुकूल उद्योगों के लिए किया जा सकता है.
जल: डीबीआर अपने जल संसाधनों (बांधों और जलाशयों) का उपयोग हरित हाइड्रोजन उत्पादन और हरित इस्पात निर्माण के लिए कर सकता है. इसके लिए इस क्षेत्र में पहले से ही एक औद्योगिक आधार और बाज़ार मौजूद है.
अवसंरचना: क्षेत्र के मौजूदा राष्ट्रीय राजमार्गों, रेल नेटवर्क और ऊर्जा अवसंरचना के कारण, यह क्षेत्र हरित निवेश आकर्षित करने के लिए तैयार है.
सौर, पवन और बायोमास: झारखंड में 59 गीगावाट सौर ऊर्जा (जमीन पर स्थापित, फ्लोटिंग और छत से), 15 गीगावाट पवन ऊर्जा (जमीन से 150 मीटर ऊपर), और बायोमास से 3 गीगावाट ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता है. अकेले डीबीआर सौर ऊर्जा से 13.5 गीगावाट ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है.
रोज़गार: औद्योगिक और ऊर्जा निवेश न केवल संभावित रोज़गार हानि की भरपाई करेंगे, बल्कि नए रोज़गार के अवसर भी पैदा करेंगे. राज्य को उद्योगों के सहयोग से कौशल विकास और कौशल उन्नयन में निवेश करना होगा.
संक्रमण निधि: डीबीआर क्षेत्र में जिला खनिज फाउंडेशन निधि से 6,600 करोड़ रुपये स्थानीय कौशल विकास और आजीविका सृजन के लिए एक प्रारंभिक निधि हो सकती है.
संस्थागत व्यवस्था: डीबीआर हरित औद्योगिक गलियारे के लिए अंतर-जिला समन्वय और निवेश प्रोत्साहन को बढ़ावा देने हेतु एक दामोदर घाटी संक्रमण प्राधिकरण बनाया जाना चाहिए.