हजारीबाग का श्री राधा कृष्ण पंच मंदिर - एक गौरवशाली इतिहास
पंच मंदिर अपने निर्माण के 125 वर्षों के बाद भी उसी आन बान और शान के साथ लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रह रहा है। बीते 125 वर्षों के दरमियान हजारीबाग में दो बड़े भूकंप आए लेकिन पंच मंदिर का बाल बांका भी नहीं हुआ था ।

हजारीबाग नगर में स्थित श्री राधा कृष्ण पंच मंदिर निर्माण की कहानी की गौरवशाली के साथ ही अनुकरणीय भी है। उस कालखंड में लोग धन अर्जित करने के बाद जगह-जगह कुआं, तालाब, सामुदायिक भवन, मंदिर और फलदार वृक्ष आदि लगा कर लोगों की सेवा किया करते थे। ऐसे लाखों हजारों लोग मरने के बाद भी आज तक याद किए जाते हैं। श्री राधा कृष्ण पंच मंदिर निर्माण की कहानी भी इसी सेवा भावना से जुड़ी हुई है। आज जो भी लोग हजारीबाग नगर में प्रवेश करते हैं, जब उनकी निगाहें पंच मंदिर पर पड़ती हैं, तो उनकी नज़रें थोड़ी देर के लिए वहीं ठहर जाती हैं। पंच मंदिर सिर्फ हजारीबाग जिले में ही नहीं बल्कि संपूर्ण देश में एक विशिष्ट मंदिर के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल रहा है। पंच मंदिर अपने निर्माण के 125 वर्षों के बाद भी उसी आन बान और शान के साथ लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रह रहा है। बीते 125 वर्षों के दरमियान हजारीबाग में दो बड़े भूकंप आए लेकिन पंच मंदिर का बाल बांका भी नहीं हुआ था ।
पंच मंदिर की निर्माण श्रद्धेय मैदा कुंवरी ने कराया था
पंच मंदिर की निर्मात्री श्रद्धेय मैदा कुंवरी हजारीबाग, बाडम बाजार की एक महाजन और जमींदार परिवार की बहु थी। किंतु निःसंतान थी । वह बचपन से ही भगवान कृष्ण पुजारिन रही थी। अध्यात्म पर उनकी गहरी आस्था थी। हिंदू धर्म के प्रचलित त्योहारों पर विशेष रूप से उपवास रखा करती थी।वह सदैव सबों के लिए मंगल कामना किया करती थी। घर आए अतिथियों का स्वागत बहुत ही अच्छे ढंग से किया करती थी । वह हमेशा दीन दुखियों को खुलकर दान दिया करती थी । उनका यह व्यवहार जीवन के अंतिम क्षणों तक बना रहा था ।
भगवान कृष्ण ने सपने में कहा था कि 'तुम पंच मंदिर बनाओ,
मैदा कुंवरी के पति हरी साहु के निधन के बाद मैदा कुंवरी के मन में यह विचार आया कि सार्वजनिक तौर पर एक मंदिर का निर्माण किया जाए। इसी विचार के साथ पंच मंदिर निर्माण की कहानी शुरू होती है। पंच मंदिर निर्माण से पूर्व उन्होंने कई लोगों से इसकी चर्चा भी की थी। इस संदर्भ में कुछ बातें जन श्रुति के आधार यह भी मिली है कि उन्हें भगवान कृष्ण का सपना आया था कि 'तुम मेरे लिए पंच मंदिर बनाओ, जिसमें विभिन्न देवी देवताओं को विराजमान करो।' मैदा कुंवरी ने कई लोगों से इस सपने का जिक्र भी किया था। इस निमित उन्होंने हजारीबाग के नगर प्रतिष्ठित कुछ सेठ - साहुकारों और व्यवसायियों से संपर्क किया था । तब सभी लोगों ने भी उन्हे मंदिर निर्माण करने की सलाह दिया था। उसके बाद मैदा कुंवरी ने नगर के कुछ गणमान्य लोगों सहित परिवार के अन्य सदस्यों मिलकर पंच मंदिर निर्माण की योजना को मूर्त रूप देने के लिए विचार विमर्श किया था। मंदिर निर्माण कार्य में सभी ने तन, मन, धन पूर्ण सहयोग देने का आश्वासन दिया। इसके बाद उन्होंने कुछ गणमान्य लोगों से राय कर पंच मंदिर के पास रिक्त पड़े अपने हिस्से की जमीन का चयन किया ।
राजस्थान के कारीगरों ने बनाया था इस मंदिर को
1880 में उन्होंने सार्वजनिक तौर पर भूमि पूजन किया गया था। इस भूमि पूजन कार्यक्रम में हजारीबाग नगर के सेठ - साहुकारों,व्यवसायियों, विभिन्न मंदिरों के महंतों सहित काफी संख्या में ग्रामीण क्षेत्र के भी हिंदू धर्म परायण जन सम्मिलित हुए थे। उस कालखंड में आज की तरह मंदिर निर्माण की तकनीक विकसित नहीं थी । इसलिए पंच मंदिर निर्माण के सलाहकारों ने राजस्थान के कुछ इंजीनियरों से संपर्क कर मंदिर का नक्शा बनवाया था। पंच मंदिर में जो विशेष कलाकृति दिखती है, राजस्थान के कारीगरों ने बनाया था।
पंच मंदिर के निर्माण में सुर्खी, चूना, गुड़, बेल आदि का इस्तेमाल किया गया था
पंच मंदिर के भूमि पूजन के बाद सर्वप्रथम मंदिर में एक कुआं का निर्माण किया गया था । ताकि मंदिर के निर्माण कार्य में पर्याप्त मात्रा में पानी मिलता रहे। इसके बावजूद नगर के तीन पुराने तालाबों क्रमशः खजांची तालाब, मीठा तालाब और छठ तालाब से भी नियमित रूप से पंच मंदिर निर्माण के दौरान लोग पानी की आपूर्ति करते रहे थे। हजारीबाग जिले में गुड़ उत्पादन का प्रमुख केंद्र बड़कागांव है। बड़कागांव से गुड़ मंदिर निर्माण के लिए आया करता था। हजारीबाग नगर और ग्रामीण क्षेत्र के कई ऐसे भक्त गण पंच मंदिर निर्माण हेतु सुर्खी, चूना, गुड़, बेल आदि निःशुल्क दान किया करते थे।
सैकड़ों गरीब मजदूरों ने मंदिर निर्माण में निःशुल्क सेवा दिया था
इस मंदिर के निर्माण में सुर्खी, चूना बेल, गुड़ आदि का इस्तेमाल किया गया था। इसलिए 125 वर्ष बीत जाने के बाद भी मंदिर उसी मजबूती के साथ खड़ा है। मंदिर का भूमि पूजन होने के बाद यह खबर आग की तरह हजारीबाग नगर सहित आसपास के गांवों में फैल गई। उस कालखंड में लोग ज्यादा भक्ति भाव में रहा करते थे । उस समय लोग आज की तरह धनवान नहीं थे, इसके बावजूद ईश्वर भक्ति में ज्यादा रहते थे। आसपास के क्षेत्र के सैकड़ों गरीब मजदूर मंदिर निर्माण में निःशुल्क कार सेवा देने के लिए उपस्थित हो गए थे। उन सबों की श्रद्धा देखते बनती थी। मंदिर निर्माण कमेटी ने मंदिर परिसर में ही उन मजदूरों के लिए भोजन का प्रबंध कर दिया गया था । कुछ मजदूर शाम को काम खत्म होने के बाद अपने अपने घर चले जाते थे। कुछ मजदूर मंदिर में ही सो जाते थे। मंदिर निर्माण से जुड़े कई कारीगर अपनी मजदूरी से आधे दर पर मंदिर निर्माण से जुड़े थे। अर्थात पंच मंदिर के निर्माण में श्रद्धेय मैदा कुंवरी का तन, मन, धन के समर्पण के साथ लोगों का श्रमदान और दान यह बताता है कि प्रारंभ से ही सार्वजनिक मंदिर के रूप में इसका निर्माण किया गया था।
मंदिर के निर्माण में लगभग बीस वर्ष लगे
मैदा कुंवरी ने अपने रजिस्टर्ड में यह कहीं भी यह अंकित नहीं किया कि इस मंदिर पर कभी भी उनके वंशजों हक होगा। मंदिर का निर्माण पूरा होने में लगभग बीस वर्षों का समय लगा था । 1880 में भूमि पूजन किया गया था। 1900 में मंदिर का पूर्ण निर्माण हो गया था। मंदिर निर्माण पूरी तरह वास्तु कला पर आधारित है। कौन देवता कहां विराजमान होंगे ? हजारीबाग के बड़ा अखाड़ा के महंत, इचाक मंदिर के महंत आदि ने गुरु शंकराचार्य से इस विषय पर बातचीत कर मंदिर निर्माण से जुड़े लोगों को इसकी एक रूपरेखा तैयार कर दी थी। पंच मंदिर वास्तुकला से युक्त और देवताओं के सही-सही कोणों पर स्थापित रहने के चलते यहां जो भी भक्त इस मंदिर अपनी मुरादें लेकर आते हैं, उनकी मुरादे पूरी होती है।
मैदा कुंवरी ने मंदिर को किसी भी एकाधिकार से मुक्त रखा
मंदिर निर्माण के बाद सन् 1901 में राधा कृष्ण पंच मंदिर की निर्मात्री श्रद्धेय मैदा कुंवरी ने एक रजिस्टर्ड डीड संख्या - 1179, दिनांक: 05.12.1901 के माध्यम से भगवान को समर्पित कर दिया था। उन्होंने इसके साथ यह भी डीड में दर्ज किया कि इस मंदिर की जो भी संपत्ति है, कोई भी इसे बिक्री नहीं सकता है बल्कि मंदिर की संपत्ति से होने वाले आए का खर्च मंदिर के पूजा पाठ और होने वाले उत्सव में होगा। मंदिर अथवा मंदिर की संपत्ति पर उनके वंशज का किसी भी तरह कोई अधिकार नहीं होगा। यह पंच मंदिर सभी हिंदू धर्म प्रेमियों के लिए उपलब्ध रहेगा ।यहां सार्वजनिक तौर पर पूजा पाठ होता रहेगा । मंदिर परिसर में आने वाले साधु-संतों का स्वागत भी पंच मंदिर द्वारा किया जाता रहेगा। आगे उन्होंने स्पष्ट तौर पर यह दर्ज किया कि मंदिर का संचालन विभिन्न मंदिरों के महंतों के साथ हजारीबाग के गणमान्य लोग मिलजुल करेंगे।
पंच मंदिर में पुजारी संतु दास द्वारा पूजा होता चला रहा है
1901 में पंच मंदिर में विराजमान देवताओं के प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद सर्वप्रथम स्वर्गीय महंत बलराम दास जी को महंत नियुक्त किया गया था। वे लंबे समय तक इस मंदिर का महंत रहे थे । इसके बाद उनके चेले स्वर्गीय महंत मोहन दास जी महंत नियुक्त किए गए थे। इन महंतों की और मंदिर का संचालन हेतु विभिन्न अखाड़ों के महंतों सहित हजारीबाग के गणमान्य लोगों की एक कमेटी सार्वजनिक तौर पर निर्णय लेती रही थी। उसके बाद स्वर्गीय महंत प्रयाग दास जी को महंत नियुक्त किया गया था। श्री राधा कृष्ण पंच मंदिर के अंतिम महंत के तौर पर स्वर्गीय महंत त्रिवेणी दास को नियुक्त किया गया था। लेकिन उन्होंने विवाह कर लिया था। इसलिए वे आगे एक पुजारी के रूप में ही पंच मंदिर में सेवा दे रहे थे। उसके बाद से ही पंच मंदिर में पूजा पाठ एक पुजारी संतु दास द्वारा ही संपन्न होता चला रहा है। इस पूजा पाठ के कार्य में एक सहयोगी पुजारी घनश्याम मिश्रा भी उन्हें सहयोग देते चले आ रहे हैं।
हजारीबाग सदर अनुमंडल पदाधिकारी श्री राधा कृष्ण पंच ट्रस्ट के अध्यक्ष होते हैं
ध्यातव्य है कि विभिन्न अखाड़ों के महंतों सहित गणमान्य लोगों द्वारा मंदिर का संचालन होता चला रहा था। 1961 - 62 में पंच मंदिर के संचालन से जुड़े संचालन समिति के सदस्यों ने बिहार राज्य हिंदू धार्मिक न्यास पर्षद, पटना के अध्यक्ष से यह आग्रह किया कि इस सार्वजनिक पंच मंदिर का विधि सम्मत संचालन हेतु एक ट्रस्ट कमेटी का गठन किया जाए,जो पंच मंदिर का संचालन करे। तब बिहार राज्य हिंदू धार्मिक न्यास पर्षद ने हजारीबाग के ग्यारह गणमान्य लोगों को मनोनीत कर पंच मंदिर संचालन की जवाबदेही सौंप दी। बाद के कालखंड में बिहार राज्य हिंदू धार्मिक न्यास पर्षद द्वारा हजारीबाग सदर अनुमंडल पदाधिकारी को श्री राधा कृष्ण पंच ट्रस्ट का पदेन अध्यक्ष मनोनीत किया जाने जाने लगा था, जो परंपरा आज भी जारी है। चूंकि 2000 में बिहार से झारखंड अलग होकर एक नया प्रांत बना था। तब से झारखंड राज्य हिंदू धार्मिक न्यास पर्षद द्वारा गठित कमेटी ही श्री राधा कृष्ण पंच मंदिर का संचालन कर रही है।