स्मृति शेष - हरिनारायण सिंह पत्रकारिता जगत के एक मजबूत स्तंभ रहे थे 

देश के जाने-माने साहित्यकार स्वर्गीय डॉ भारत यायावर ने कहा  था कि 'हरिनारायण सिंह को पत्रकारिता की बहुत ही अच्छी समझ है ।  वे विभिन्न विषयों पर  सटीक टिप्पणी दर्ज कर पत्रकारिता की धार को मांजते रहते हैं।'

स्मृति शेष - हरिनारायण सिंह पत्रकारिता जगत के एक मजबूत स्तंभ रहे थे 

झारखंड के लब्ध प्रतिष्ठित वरिष्ठ पत्रकार, संपादक हरिनारायण सिंह का मात्र 68 वर्ष की उम्र में इस दुनिया से अलविदा हो जाना हिंदी पत्रकारिता जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति के समान है। हिंदी पत्रकारिता जगत ने एक मजबूत कलमकार को खो दिया है । भाई हरिनारायण सिंह का संपूर्ण जीवन हिंदी पत्रकारिता को समर्पित रहा था। उनका हल्का मुस्कान बिखेरता चेहरा सदा लोगों को याद दिलाता रहेगा। वे बाहर से जितने सहज, सरल और भोले दिखते थे, अंदर से उतने ही निर्मल मन के भी थे। वे विपरीत परिस्थितियों में भी अनुकूल रहा करते थे। उनका स्थिर पन, शांत प्रिय स्वभाव जीवन के अंतिम क्षणों तक बना रहा था । वे जिस तरह आजीवन पत्रकारिता के प्रति गंभीर रहे, उसी गंभीरता से इंसानी रिश्तों और मानवीय संवेदनाओं को भी अन्तर्मन से महत्व दिया करते थे।
   उनका जन्म हिंदी पत्रकारिता को एक गति प्रदान करने के लिए हुआ था।  कोई जान भी नहीं पाए कि हरिनारायण भाई इतनी जल्दी हंसते मुस्कुराते गुजर जाएंगे। मैं, उनसे जब भी मिला, पत्रकारिता की कुछ नई बातें सीखने को मिली। वे बोलते काम जरूर, लेकिन जब भी बोलते, सारगर्भित बातें ही होती थीं। उनसे मिलकर पत्रकारिता के क्षेत्र में कुछ नया करने की ऊर्जा संचारित हो जाती थी। ऐसा था, हरिनारायण सिंह जी का व्यक्तित्व। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के पातेपुर में जरूर हुआ था।  लेकिन सच्चे अर्थों में वे एक पत्रकार के रूप में झारखंड के लिए ही आजीवन  समर्पित रहे थे। रांची आने के बाद झारखंड के ही होकर रह गए थे । उन पर पत्रकारिता का ऐसा जुनून सवार रहता था कि कई रिश्तेदारों से बहुत दिनों तक मिल नहीं पाते थे।  
 उन्होंने झारखंड को सिर्फ समझा ही नहीं बल्कि आत्मसात भी किया। वे झारखंड की संस्कृति में  पूरी तरह घुल मिल गए थे। उन्होंने झारखंड की रीति रिवाज, संस्कृति, बोलचाल और रहन-सहन को बहुत ही अंदर से वरण भी किया था । भाई हरिनारायण सिंह के संबंध में देश के जाने-माने साहित्यकार स्वर्गीय डॉ भारत यायावर ने कहा  था कि 'हरिनारायण सिंह को पत्रकारिता की बहुत ही अच्छी समझ है ।  वे विभिन्न विषयों पर  सटीक टिप्पणी दर्ज कर पत्रकारिता की धार को मांजते रहते हैं।'   जब हरिनारायण सिंह कोलकाता से निकलने वाली पत्रिका रविवार में एक टाइपिस्ट के रूप में कार्यरत थे । तब भारत यायावर से  उनकी बराबर मुलाकात होती रहती थी।  उन दोनों के बीच की घंटों बातचीत होती थी । उन दोनों के बीच होने वाली बातचीत का विषय, पत्रकारिता, साहित्य और विविध विषयों पर लिखे जा रहे सामग्रियों के माध्यम से समाज को कैसे जागृत किया जाए ?
 देश के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश जी के साथ ही भाई हरिनारायण सिंह जी का 1989 में प्रभात खबर के बहाने रांची आना हुआ था । तब झारखंड आंदोलन अपने चरम पर था। झारखंड अलग प्रांत शीघ्र अति शीघ्र कैसे बने ?  इसको लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में लंबे समय से संघर्ष चला आ रहा था । लेकिन बिहार सरकार द्वारा एक राजनीति तहत झारखंड को अलग प्रांत का दर्जा प्रदान नहीं किया जा रहा था। इस बात को प्रभात खबर के  संपादक हरिवंश  और हरिनारायण सिंह समझ रहे थे। उन दोनों ने एक योजना बद्ध  तरीके से झारखंड अलग प्रांत आंदोलन के संघर्ष को प्रमुखता के साथ प्रभात खबर में छापना प्रारंभ किया । इसी दौरान हमारी कई मुलाकातें हरिवंश जी से और भाई हरिनारायण सिंह से होती रही थी। एक बार हरिनारायण सिंह ने मुझसे कहा था कि 'देखिए !  एक न एक दिन झारखंड अलग प्रांत बनकर रहेगा। इस संघर्ष में झारखंड से प्रकाशित होने वाले तमाम पत्र भी अपनी अपनी महती भूमिका अदा कर रहे हैं।‌ बस जरूरत है, झारखंड अलग प्रांत संघर्ष से जुड़े नेता गण पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ आंदोलन करें।  इसके साथ ही झारखंड के लेखक गण, पत्रकार और बुद्धिजीवी भी इससे संबंधित अपनी सामग्रियां अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित कराते रहें।  ताकि केंद्र सरकार और बिहार सरकार इस आंदोलन की गंभीरता को समझ सके।' उन्होंने झारखंड अलग प्रांत आंदोलन के ऑचित्य पर मेरे कई आलेखों को प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया था।  सच्चे अर्थों में भाई हरिनारायण सिंह एक पत्रकार के साथ ही  झारखंड अलग प्रांत संघर्ष के सिपाही भी थे। जब उन्होंने प्रभात खबर छोड़कर देश का एक लब्धप्रतिष्ठित हिंदी दैनिक हिंदुस्तान से स्थानीय संपादक के रूप में जुड़कर जो किया, उसे कभी भी विस्तृत नहीं किया जा सकता है। उन्होंने हिंदुस्तान को पूरे झारखंड में बहुत ही मजबूती के साथ स्थापित किया।  हिंदुस्तान के बतौर संपादक उन्होंने जो पत्रकारिता की सेवा की सदा याद किया जाता रहेगा।‌ उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी पत्रकारिता के मूल्यों के साथ कभी भी समझौता नहीं किया। चाहे मामला कोल माफिया, भूमाफियाऔर  नक्सली से संबंधित क्यों न रहा हो, उन्होंने कभी भी किसी खबर को दबाया नहीं बल्कि निर्भीकता के साथ प्रकाशित किया। 
  वे प्रारंभ से ही पत्रकारिता के प्रति गंभीर रहे थे।  ऐसा उनके साथ कई बार वाक्या  हुआ कि हिंदुस्तान में खबर छपने के बाद संबंधित लोगों ने उन्हें दूरभाष पर और मिलकर कम  परेशान नहीं किया।  लेकिन उन्होंने अपनी बातों को दो टूक तरीके से रखा । उन्होंने उन लोगों से साफ तौर पर कहा कि 'अगर हिंदुस्तान में छपने वाली रिपोर्ट गलत है, तो इससे संबंधित  कागजात मुझे उपलब्ध कराएं। मैं आपके कागजात की जांच कर जरूर  प्रकाशित करूंगा । हरिनारायण सिंह की ऐसी दो टूक बातें सुनकर लोग कहां टिक पाते थे।  सच्चे अर्थों में वे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के एक मजबूत सिपाही रहे थे। 
  प्रभात खबर, हिंदुस्तान, आजाद सिपाही सहित कई हिन्दी दैनिक पत्रों सहित  दृश्य मीडिया में काम करते हुए हरिनारायण सिंह ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण यह काम किया कि नए उभरते पत्रकारों को एक तरह से प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया। वे नए पत्रकारों को इस पेशे में आने और उसके उद्देश्य को बतलाया करते थे । उन्होंने  पत्रकारिता के 36 वर्षों के दौरान कई नए पत्रकारों को तराशा। आज उनके द्वारा तरासे  गए कई पत्रकार पत्रकारिता के विभिन्न आयामों में अपनी सेवाएं देश भर में देर रहे है।  वे पत्रकारिता के एक चलता फिरता इंस्टीट्यूशन बन गए थे। उनसे नए पत्रकारों को सीखने का काफी बेहतर अवसर मिल रहा था। इतना व्यस्त होने के बावजूद रोजाना उनसे नए पत्रकार मिलते और परामर्श लेते थे ।  वे उन सभी का  मार्ग प्रशस्त किया करते थे । उनका इस तरह अचानक चले जाने से एक तरह से पत्रकारों के मार्गदर्शन को खो देने के समान है  ।  नए पत्रकार, पत्र के संपादक से सीधे तौर पर मिलने से डरते रहे हैं । लेकिन भाई हरिनारायण सिंह ने  पत्रकारों के लिए अपने  घर का दरवाजा हमेशा खोल कर रखा।  
एक बार हजारीबाग के एक समाजसेवी सुवेंदु जयपुरियार के आमंत्रण पर एक पुस्तक मेले का उद्घाटन करने के लिए बतौर मुख्य अतिथि के रूप में हरिनारायण सिंह का हजारीबाग में आना हुआ था । उक्त आयोजन में  प्रख्यात कथाकार रतन वर्मा, कवि डॉ शंभू बादल, कथाकार पंकज मित्र, कथाकार मन्मत मिश्रा, स्वर्गीय दिनेश चंद्र प्रवासी आदि सम्मिलित हुए थे । उस  पुस्तक मेला में भाई हरिनारायण सिंह ने कहा कि  'पुस्तक क्या है ? पुस्तक ज्ञान के लिए बहुत ही जरूरी है।  हम सब पुस्तक पढ़ते जरूर हैं, लेकिन ही कुछ दिनों में भूल जाते हैं । इसका सबसे बड़ा कारण है, पुस्तक पढ़ने का तरीका।‌ इस तरीके को बदलने की जरूरत है । पुस्तक ज्ञान की देवी हैं । इसलिए पुस्तक को बड़े ही ध्यान और मन से पढ़ने की जरूरत है । तभी पुस्तक की पढ़ी बातें लंबे समय तक याद रह पाएंगी।'  आगे उन्होंने  पुस्तकालय के महत्व पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि 'लोग अपने स्टैंडर्ड को और ऊंचा उठाने के लिए अपने घरों में कई पुस्तकें सजा तो जरूर लेते हैं, लेकिन पढ़ नहीं पाते हैं।  इसलिए पुस्तक सिर्फ घर की शोभा न बने बल्कि पुस्तक को पढ़ा जाए। तभी पुस्तक रखने की सार्थकता है।'  उक्त आयोजन में भाई हरिनारायण  सिंह ने कार्यक्रम में सम्मिलित सभी कथाकारों, कवियों, लेखकों से  परिचय लिया ।‌ इसी दौरान मैंने उन्हें एक लिफाफा  दिया। जिसमें मेरा एक आलेख था।  जिसे उन्होंने पांच किस्तों में प्रकाशित भी किया था।
भाई हरिनारायण सिंह का स शरीर न होना, यह हम सबों को जीवन भर कचोटता रहेगा, लेकिन वे सैकड़ो पत्रकारों में जो पत्रकारिता के बीज डाले हैं, अंकुरित होकर पत्रकारिता के  क्षेत्र में युद्ध रत हैं। सभी हरिनारायण सिंह ही हैं।  हरिनारायण सिंह के जीवन से हम सबों को निर्भीक होकर पत्रकारिता करने की सीख लेनी चाहिए ।  भाई हरिनारायण सिंह  ने जिस गंभीरता से पत्रकारिता की सेवा की उसी गंभीरता के साथ इंसानी रिश्तों और मानवीय संवेदनाओं को भी आत्मसात किया  था।